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Archive for अक्टूबर, 2008

ज़िंदगी की भाग-दोड में जाने वो पल कहाँ खो गए


जब कुछ पल बैठ कर चैन से बतिया लिया करते थे


एक चाए के प्याले संग


जाने वो पल कहाँ खो गए


जब सावन की पहली बारिश


तन और मन दोनों को भिगो जाती थी


जाने वो पल कहाँ खो गए


जब कितने ही पल डूबते सूरज को निहारते बीत जाते थे


जब घंटो तक चाँद-तारो की दुनिया मे खोये रहते थे


जाने वो पल कहाँ खो गए


जिसमे बसा था इन्द्रधनुष का हर रंग


हर रंग दूजे से जुदा था


पर फिर भी एक-दूजे से जुडा था


जाने वो पल कहाँ खो गए


जब हर चिंता से मुक्त था जीवन


बस अपनी ही छोटी सी दुनिया में मस्त था जीवन


जाने वो पल कहाँ खो गए

काश लौट कर आ सकते वो पल

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