दबे कदमो से
सब से छुपते छुपाते
आज चाँद उतर आया मेरे आँगन ।
सुना था कि,
चाँद में दाग होता है ।
हां ,दाग तो था , पर,
वो उसकी खूबसूरती को ओर भी बढा रहा था।
मैं उसकी आभा में ऐसी खोई,
कि एकटक उसे निहारती ही रही
जाने कब तक ।
जब होश आया तो, उससे कुछ कहना चाहा
पर,
उसके जाने का समय हो गया था ।
वो बिना कुछ कहे,
बिना कुछ सुने,
बस अपना दीदार करा कर चला गया
Archive for दिसम्बर, 2008
चाँद
Posted in kavita,kala, tagged आभा, खूबसूरती, चाँद, जिंदगी, दाग, दीदार, समय, होश, Blogroll, hindi, kala, kavita, muskan, poetry, zindagi on दिसम्बर 29, 2008| 7 Comments »
कुछ लकीरे
Posted in zindagi, tagged अक्स, अजनबी, आंसू, आग, उदास, ज़िन्दगी, तस्वीर, पीड़ा, फ़रिश्ते, रब, लकीरे, Blogroll, hindi poetry, kala, kavita, muskan, poetry, zindagi on दिसम्बर 23, 2008| 9 Comments »
कल्पना की लकीरों से, तेरी एक तस्वीर बनाई है
जब भी देखती हूँ उसमे, तेरा ही अक्स नज़र आता है
किसी का उदास चेहरा उस, अजनबी फ़रिश्ते से देखा नही जाता
किसी कि भी आँखों में आंसू देख ,मदद को दोडा वो आता है
हर तरफ़ आग ही आग, मचा हाहाकार है
ऐसे माहौल में तू ,कैसे आराम फरमाता है
कल जब ये आग, तेरे घर तक पहुंच जायेगी
तब ही शायद जलन की पीड़ा को जान पायेगा
एक दिन वो रब, सब ठीक कर देगा
ऐसी बातें कह कर तू, क्यों ख़ुद को बरगलाता है
ख़ुद- ब -ख़ुद कुछ भी ठीक नही होता है
उस रब ने ये काम हमारे ही जिम्मे छोडा है
वक्त
Posted in zindagi, tagged इंतज़ार, उमर, जवाब .., जिंदगी, वक्त, Blogroll, hindi, hindi poetry, kala, kavita, muskan, poetry, zindagi on दिसम्बर 18, 2008| 5 Comments »
वो वक्त जैसे बीत कर भी नही बिता
मेरे आज में शामिल है वो कुछ इस तरह
कहते है वक्त से पहले किसी को कुछ नही मिलता
जाने वो वक्त कब आएगा
उस वक्त के इंतज़ार में तो उमर गुजर गई
वक्त इंसान को क्या से क्या बना देता है
कल तक जो नही देते थे जवाब
आज वो पूछते है हाल
आदत
Posted in zindagi, tagged आदत, आहट .महफ़िल, डर, तन्हाई, िजंदगी, Blogroll, hindi, hindi poetry, kala, muskan, zindagi on दिसम्बर 12, 2008| 5 Comments »
तन्हाई की ऐसी आदत हो गई है
कि महफ़िल से डर लगता है
किसी के जाने से तो कभी ना डरे
पर किसी के आने की आहट से भी डर लगता है
सरकार की स्वप्न निद्रा
Posted in Uncategorized, tagged कुर्सी, निद्रा, मुंबई, वक्त, सपने, सरकार, स्वप्न, Blogroll, hindi, kala, kavita, zindagi on दिसम्बर 2, 2008| 6 Comments »
सरकार सोती रही
मीठे सपने में खोई रही
आंतकी धमाके करते रहे पर
वो स्वप्न निद्रा से न जागी
खुफिया एजेंसिया कान में
जोर जोर से चिल्लाती रही
देश को खतरा है ,ये बताती रही
जयपुर गुजरात ,बंगलुरु ,दिल्ली में
धमाके होते रहे
पर सरकार नही जागी
उसके कान में तो जू तक न रेंगी
वो जागी तो कब ?
जब लोकसभा चुनावों में 6 महीने का वक्त था बाकी
जब मुंबई में हो गए थे युद्ध जैसे हालात
ऐसे समय में उसे अपनी कुर्सी डोलती नज़र आई
फिर अफरा तफरी में उसने ढेर सारे फैसले कर डाले
इस्तीफों की राजनीति कर दी गई
आरोप परत्यारोप का दौर शुर हो गया
सरकार के लिए फैसलों का हश्र क्या होगा
सरकार की ये फुर्ती कब तक कायम रहती है
ये तो वक्त ही बताएगा
पर जो जिंदगिया बेवक्त इस दुनिया से चली गई
सरकार उनके परिवारों को क्या जवाब देगी