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Posts Tagged ‘रंग’

ज़िंदगी की भाग-दोड में जाने वो पल कहाँ खो गए


जब कुछ पल बैठ कर चैन से बतिया लिया करते थे


एक चाए के प्याले संग


जाने वो पल कहाँ खो गए


जब सावन की पहली बारिश


तन और मन दोनों को भिगो जाती थी


जाने वो पल कहाँ खो गए


जब कितने ही पल डूबते सूरज को निहारते बीत जाते थे


जब घंटो तक चाँद-तारो की दुनिया मे खोये रहते थे


जाने वो पल कहाँ खो गए


जिसमे बसा था इन्द्रधनुष का हर रंग


हर रंग दूजे से जुदा था


पर फिर भी एक-दूजे से जुडा था


जाने वो पल कहाँ खो गए


जब हर चिंता से मुक्त था जीवन


बस अपनी ही छोटी सी दुनिया में मस्त था जीवन


जाने वो पल कहाँ खो गए

काश लौट कर आ सकते वो पल

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आज फिर कान्हा धरती पर आएँगे


फिर लीला दिखलाएँगे


फिर मटकी तोड़ के माखन चुराएंगे


आज फिर कान्हा धरती पर आएँगे


फिर गोपियों संग


यमुना तीर पर रास रचायेंगे


आज फिर
बर्ज श्याम रंग में रंग जाएगा


आज फिर कान्हा धरती पर आएँगे


फिर गीता की वाणी गूंजेगी


फिर भटको को राह दिखायेगे


आज फिर कान्हा धरती पर आएँगे


मेरे कान्हा आज फिर धरती पर आयेंगे

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तुम साथ हो तो सब अच्छा लगता है
अंधेरे मे भी रोशनी का रंग दिखता है
हो के जुदा तुमसे ये चाँद भी हमे दर्द देता है

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