इक पल मे कितना कुछ बदल जाता है
पैसा कैसे सब रिश्तो को तोड़ देता है
आज जान पाई हूँ
पागल थी मैं जो इन रिश्तो को अपना मान बैठी थी
पागल थी मैं जो इन पर अपना सब कुछ वार बैठी थी
सोचती थी मेरे सुख दुःख के साथी है
हर दुःख मे मुझको थाम लेंगे
पर गलत थी मैं
वो तो मेरे हर सुख को दुःख मे बदलने को तैयार बैठे है
आज जान पाई हूँ
रिश्तों की बेवफाई को
कल तक जिनके लिए हम अपनों से भी अपने थे
क्यों आज इतने पराए हो गए
की हमारी मौजुदगी भी उन्हें खलती है
मैं नही जानती कौन गलत है कौन सही
ना मैं चाहती हूँ किसी को गलत ठहराना
मैं चाहती हूँ तो इतना की
पैसा हमारे रिशेते को तोड ना पाए
हम चाहे दूर रहे पर
मन मे एक दूसरे के लिए नफरत न रखे
एक दूसरे की खुशियों से न जले
एक दूसरे का बुरा न चाहे