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Archive for जुलाई, 2008

खवाबो में चाँद को देखा था


उसे पाया भी था


पर हकीकत में


कभी उसे पाने की तमन्ना नही की


मैं खवाब और हकीकत के बीच का फासला जानती हूँ


जिंदगी में कुछ खवाब सच हो जाते है


पर हकीकत से


नजरे चुराकर देखे गए खवाब कभी सच होते नही


मैं खवाब और हकीकत के बीच का फासला जानती हूँ

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नजारा

दुनिया की भीड़ में खो गए, तुम कहाँ


हर पल नज़रे तुम्हे ही ढूंढती है


जानती है की तुम नही हो यहाँ, पर


फ़िर भी तुम्हारा ही नजारा ढूंढती है

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सामना

उस पल को बीते जमाना हो गया
जब हुआ था मेरा तुझसे सामना
आज अगर तुम मिल भी जाओ तो
हम दो अजनबियों की तरह
एक दूजे को बिना देखे ही गुजर जायंगे

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जब आंखो मे सपने थे ,अरमान थे

तो तुम्हे तब भी एतराज था

आज जब हर सपना ,हर अरमान मर चुका है

तो तुम्हे अब भी एतराज है

तुम्हे ये हक किसने कब दिया

आज मुझे तुम्हारे इस हक पे एतराज है

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aaj achank hi yeh  rachana mere samane aa gayi jise mene aase hi kitab me likhkar chod diya tha .aaj aap logo ke liya lekar aayi hoon.apne comment ke jariye batayega jarur ki aapko kaisi lagi

खुद को चारदीवारो मे बंद िकये बैठे थे
घर से िनकले तो याद आया फागुन है

नफरतो की आँधी ने िबखेर िदया घरौँदा मेरा
शुकर है आज तो अमन है

हर तरफ बरसता था पयार ही पयार
ऐसा मेरा पयारा बचपन है

पूछते है वो कौन हूँ मै
कोई बता दे उंहे नाचीज मुसकान है

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