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Archive for अप्रैल, 2008

परछाई

मै तेरी परछाई हूँ
सदा तेरे संग चलूगी ।
रूप रंग आकार तो बदल सकता है
पर हर रूप रंग आकार मे तेरा साथ िनभाऊँगी ।
ँजब भी याद करोगे
अपने पास ही पाओगे ।
जब भी नजरे ऊठाओगे
अपने सामने ही पाओगे ।
भीड मे भी गर कभी घेर ले तनहाई
तो उन तनहाईयो मे देने तुमहारा साथ मै ही आऊँगी ।

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गजल बन गई

हम तो आए थे आपसे, हाल ए िदल बयाँ करने
पर बातो ही बातो मे , गजल बन गई ।

जो िदल मे था, जबाँ से सब कह िदया
और शबदो ही शबदो मे, गजलबन गई ।

तुम िबना कुछ कहे, बस देखते ही रह गए
हमने आखो से आखो को िमलाया तो, गजल बन गई ।

तुमहारे कुछ कहे िबना, ये गजल अधूरी थी
पर जब तुमने कािफये से कािफये को िमलाया तो ,गजल बन गई ।

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िजंदगी

हाथो से वकत िफसल गया
हम बस देखते ही रह गए।

िजंदगी ने िकए िकतने िसतम
हम सब सह गए।

िदल की बात जुबाँ पर कभी आ ना सकी
हम आखो से ही सब कह गए।

खुद से ही बोीझल इन आखो को बंद िकया
तो आखो से आसूँ बह गए।

बडे जतनो से संजोया िजन सपनो को
एक ही झोके मे वे बह गए ।

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मुझे इंतजार है उस पल का
जब मेरी कलपनाएँ आकार लेंगी
जब तुम मेरे सामने होंगे
मै इंतजार करुँगी उस पल का

आज इस पल मे तुम मेरे पास नही हो
पर िफर भी लगता है मेरे हर कदम पे तुम मेरे साथ हो
मै तुमहे छू नही सकती
पर ये हवाएँ मुझे तुमहारे होने का अहसास करा जाती है

ये हवाएँ तुमहे भी तो छूती होंगी
तुमहे भी तो मेरा अहसास कराती होंंगी
मै इंतजार करुँगी उस पल का
जब ये अहसास तुमहे मेरी मेरे पास ले आएँगा
मै इंतजार करुँगी उस पल का
जब तुम मेरे सामने होंगे

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िकस िकस से बचाए अपना दामन
हर मोड पे लुटने को हजार बैठे है।
पुजी जाती थी कल तक जहाँ
आज वहीं बोली लगाने को तैयार बैठे है।

िजसके िलए छोडी सारी दुिनया
वही उसे बाजार मे सजाए बैठे है।
िजन पे थी सुरकशा की िजममेदारी
वही उसे बेचने को तैयार बैठे है।

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