मै तेरी परछाई हूँ
सदा तेरे संग चलूगी ।
रूप रंग आकार तो बदल सकता है
पर हर रूप रंग आकार मे तेरा साथ िनभाऊँगी ।
ँजब भी याद करोगे
अपने पास ही पाओगे ।
जब भी नजरे ऊठाओगे
अपने सामने ही पाओगे ।
भीड मे भी गर कभी घेर ले तनहाई
तो उन तनहाईयो मे देने तुमहारा साथ मै ही आऊँगी ।
Archive for अप्रैल, 2008
परछाई
Posted in zindagi, tagged Blogroll, hindi poetry, kala, kavita, muskan, parchai, tanhai on अप्रैल 29, 2008| 2 Comments »
गजल बन गई
Posted in tum, tagged Blogroll, dil, gajal, kafiya, kala, kavita, muskan, tum on अप्रैल 28, 2008| 3 Comments »
हम तो आए थे आपसे, हाल ए िदल बयाँ करने
पर बातो ही बातो मे , गजल बन गई ।
जो िदल मे था, जबाँ से सब कह िदया
और शबदो ही शबदो मे, गजलबन गई ।
तुम िबना कुछ कहे, बस देखते ही रह गए
हमने आखो से आखो को िमलाया तो, गजल बन गई ।
तुमहारे कुछ कहे िबना, ये गजल अधूरी थी
पर जब तुमने कािफये से कािफये को िमलाया तो ,गजल बन गई ।
िजंदगी
Posted in zindagi, tagged hindi poetry, kala, kavita, muskan, zindagi on अप्रैल 26, 2008| 2 Comments »
हाथो से वकत िफसल गया
हम बस देखते ही रह गए।
िजंदगी ने िकए िकतने िसतम
हम सब सह गए।
िदल की बात जुबाँ पर कभी आ ना सकी
हम आखो से ही सब कह गए।
खुद से ही बोीझल इन आखो को बंद िकया
तो आखो से आसूँ बह गए।
बडे जतनो से संजोया िजन सपनो को
एक ही झोके मे वे बह गए ।
मुझे इंतजार है उस पल का
Posted in tum, tagged Blogroll, hindi poetry, kala, kavita, muskan, tum on अप्रैल 24, 2008| 2 Comments »
मुझे इंतजार है उस पल का
जब मेरी कलपनाएँ आकार लेंगी
जब तुम मेरे सामने होंगे
मै इंतजार करुँगी उस पल का
आज इस पल मे तुम मेरे पास नही हो
पर िफर भी लगता है मेरे हर कदम पे तुम मेरे साथ हो
मै तुमहे छू नही सकती
पर ये हवाएँ मुझे तुमहारे होने का अहसास करा जाती है
ये हवाएँ तुमहे भी तो छूती होंगी
तुमहे भी तो मेरा अहसास कराती होंंगी
मै इंतजार करुँगी उस पल का
जब ये अहसास तुमहे मेरी मेरे पास ले आएँगा
मै इंतजार करुँगी उस पल का
जब तुम मेरे सामने होंगे
तैयार बैठे है
Posted in Uncategorized, tagged Blogroll, hindi poetry, kala, kavita, muskan on अप्रैल 22, 2008| 1 Comment »
िकस िकस से बचाए अपना दामन
हर मोड पे लुटने को हजार बैठे है।
पुजी जाती थी कल तक जहाँ
आज वहीं बोली लगाने को तैयार बैठे है।
ै
िजसके िलए छोडी सारी दुिनया
वही उसे बाजार मे सजाए बैठे है।
िजन पे थी सुरकशा की िजममेदारी
वही उसे बेचने को तैयार बैठे है।