ना जाने कया सोचकर
िदल की बातो को
कागज पर उतार िदया।
पर अगले ही पल
ना जाने कयू
कागज फाड िदया।
काश िजंदगी के साथ भी
ऐसा िकया जा सकता।
िकसी बेकार पनने को
िजंदगी की िकताब से फाडा जा सकता ।
Posted in zindagi, tagged िजंदगी, िदल, Blogroll, hindi, kala, kavita, muskan, poetry, zindagi on जून 27, 2008| 2 Comments »
ना जाने कया सोचकर
िदल की बातो को
कागज पर उतार िदया।
पर अगले ही पल
ना जाने कयू
कागज फाड िदया।
काश िजंदगी के साथ भी
ऐसा िकया जा सकता।
िकसी बेकार पनने को
िजंदगी की िकताब से फाडा जा सकता ।